जीवन उत्सव है। 

जीवन संघर्ष नहीं, उत्सव ही है।  आपको यह संघर्ष लगता है तो इसके पीछे तीन कारण हैं।

पहला, आपका सारा ध्यान सिर्फ जीत पर लगा हुआ है। बचपन से ही आपको सिखा दिया गया है कि जिंदगी में जीतना अनिवार्य है, जिस कारण आप हारने पर हतोत्साहित हो जाते हैं और जीतने के लिए आपको हर कीमत छोटी लगती है। आपकी इस सोच ने जीवन को आपके लिए संघर्ष भरा बना दिया है। आपको एक ही बात समझनी है कि जीवन एक बहाव में ऊपर-नीचे चलता रहता है। ऊपर-नीचे यानी सुख-दुख, हार-जीत। यही जीवन का सूत्र है। अगर आप इस सच को स्वीकार नहीं करेंगे तो जीवन हमेशा ही आपके लिए संघर्ष बना रहेगा। जीवन तो रोज जिया जाता है। आपको तय करना है कि इसे किस प्रकार से जीना चाहेंगे-बड़ी खुशियों के पीछे भागते हुए, पसीने से लथपथ, अस्त-व्यस्त या फिर आराम से चलते हुए, दृश्यों का आनंद लेते हुए?

दूसरा कारण यह है कि आपने जीवन के बहाव में बहने से स्वयं को मना कर दिया है। इसलिए आपका जीवन संघर्ष भरा बन गया है। जिंदगी हर पल अपना रूप बदल रही है। उसी अनुरूप जीवन जीने के ढंग भी बदलते हैं। समझने की बात बस  इतनी है कि इस जगत में गतिशीलता महत्वपूर्ण है। समस्या तब आती है जब आप समय को जकड़ना चाहते हैं। इसका परिणाम अच्छा नहीं होता।

तीसरा कारण है भविष्य के प्रति जरूरत से अधिक चिंता और भूतकाल से बढ़ा हुआ आकर्षण। इन दोनों स्थितियों में आप इतना असंतुलित रहते हैं कि वर्तमान में असहजता महसूस करने लगते हैं। बिना बात की चिंता के कारण, अज्ञात डर के कारण आप खुद को हीन समझते हैं और निश्चिंत भाव से ईश्वर, गुरु, इष्ट किसी पर विश्वास नहीं कर पाते।

जब आप हर समय नकारात्मक विचारों के भंवर में उलझे हुए रहते हैं, आपके जीवन में संघर्ष बढ़ता जाता है।  

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