निष्काम कर्म

एक गरीब विधवा के पुत्र ने एक बार अपने राजा को देखा । राजा को देख कर उसने अपनी माँ से पूछा- माँ! क्या कभी मैं राजा से बात कर पाऊँगा ?   माँ हंसी और चुप रह गई । पर वह लड़का तो निश्चय कर चुका था ।

उन्हीं दिनों गाँव में एक संत आए हुए थे। तो युवक ने उनके चरणों में अपनी इच्छा रखी । संत ने कहा- अमुक स्थान पर राजा का महल बन रहा है, तुम वहाँ चले जाओ और मजदूरी करो । पर ध्यान रखना, वेतन न लेना । अर्थात् बदले में कुछ माँगना मत निष्काम रहना । वह लड़का गया । वह मेहनत दोगुनी करता पर वेतन न लेता ।

एक दिन राजा निरीक्षण करने आया । उसने लड़के की लगन देखी । प्रबंधक से पूछा- यह लड़का कौन है, जो इतनी तन्मयता से काम में लगा है ? इसे आज अधिक मजदूरी देना । प्रबंधक ने विनय की- महाराज! इसका अजीब हाल है, दो महीने से इसी उत्साह से काम कर रहा है । पर हैरानी यह है कि यह मजदूरी नहीं लेता । कहता है मेरे घर का काम है । घर के काम की क्या मजदूरी लेनी ?

राजा ने उसे बुला कर कहा- बेटा ! तू मजदूरी क्यों नहीं लेता ? बता तू क्या चाहता है ? लड़का राजा के पैरों में गिर पड़ा और बोला- महाराज ! आपके दर्शन हो गए, आपकी कृपा दृष्टि मिल गई, मुझे मेरी मजदूरी मिल गई । अब मुझे और कुछ नहीं चाहिए ।

राजा उसे मंत्री बना कर अपने साथ ले गया । और कुछ समय बाद अपनी इकलौती पुत्री का विवाह भी उसके साथ कर दिया । राजा का कोई पुत्र था नहीं, तो कालांतर में उसे ही राज्य भी सौंप दिया ।  

बिल्कुल इसी प्रकार से भगवान ही हम सभी के राजा हैं । और हम सभी भगवान के मजदूर हैं । भगवान का भजन करना ही मजदूरी करना है । संत ही मंत्री है । भक्ति ही राजपुत्री है । मोक्ष ही वह राज्य है । हम भगवान के भजन के बदले में कुछ भी न माँगें तो वे भगवान स्वयं दर्शन देकर, पहले संत से मिलवा देते हैं और फिर अपनी भक्ति प्रदान कर, कालांतर में मोक्ष ही दे देते हैं ।

वह लड़का सकाम कर्म करता, तो मजदूरी ही पाता, निष्काम कर्म किया तो राजा बन बैठा । यही सकाम और निष्काम कर्म के फल में भेद है ।  

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