एक बार द्रोपदी सुबह तड़के स्नान करने यमुना घाट पर गयी| भोर का समय था| तभी उसका ध्यान सहज ही एक साधु की ओर गया जिसके शरीर पर मात्र एक लँगोटी थी| साधु स्नान के पश्चात अपनी दुसरी लँगोटी लेने गया तो वो लँगोटी अचानक हवा के झोंके से उड़ पानी मे चली गयी और बह गयी| सँयोगवश साधु ने जो लँगोटी पहनी थी वो भी फटी हुई थी| साधु सोच मे पड़ गया कि अब वह अपनी लाज कैसे बचाए| थोड़ी देर मे सुर्योदय हो जाएगा और घाट पर भीड़ बढ जाएगी|
साधु तेजी से पानी के बाहर आया और झाड़ी मे छिप गया| द्रोपदी यह सारा दृश्य देख अपनी साडी जो पहन रखी थी उसमें से आधी फाड़ कर उस साधु के पास गयी ओर उसे आधी साड़ी देते हुए बोली-तात् मैं आपकी परेशानी समझ गयी, इस वस्त्र से अपनी लाज ढँक लीजिए| साधु ने सकुचाते हुए साड़ी का टुकड़ा ले लिया और आशीष दिया, “जिस तरह आज तुमने मेरी लाज बचायी उसी तरह एक दिन भगवान तुम्हारी लाज बचाएंगे”,
और जब भरी सभा में चीर-हरण के समय द्रोपदी की करुण पुकार नारद ने भगवान तक पहुंचाई तो भगवान ने कहा-कर्मो के बदले मेरी कृपा बरसती है| क्या कोई पुण्य है द्रोपदी के खाते में? जांचा परखा गया तो उस दिन साधु को दिया वस्त्र दान हिसाब में मिला जिसका ब्याज भी कई गुणा बढ़ गया था जिसको चुकता करने भगवान पहुंच गये द्रोपदी की मदद करने दुशासन चीर खींचता गया और हज़ारो गज कपड़ा बढता गया।
इंसान यदि सकर्म करे तो उसका फल सूद सहित मिलता है और दुष्कर्म करे तो सूद सहित भोगना पडता है|